इस तरह आत्मग्रस्त मूढ़ता के रथ ने रौंद दिया बौद्ध दर्शन
और इतिहास को
(अशोक कुमार पाण्डे द्वारा मार्क्सवादी अध्ययन चक्र में
फैलायी जा धुन्ध का आलोचनात्मक विवेचन)
(पांचवी किश्त)
·
हण्ड्रेड
फ्लावर्स मार्क्सिस्ट स्टडी ग्रुप, दिल्ली
विश्वविद्यालय,
दिल्ली
अब हम पाण्डे जी के पांचवे वीडियो की आलोचनात्मक विवेचना पर आते हैं।
पाण्डे जी पांचवे वीडियो में थोड़ा 'कांशस' हो
गये हैं। हालांकि इस सचेत होने और नरभसाने को उन्होंने आक्रामकता के पर्दे में
छिपाने की काफी कोशिश की है। लगभग आधे घण्टे के वीडियो में पाण्डे जी ने
कम-से-कम 15 मिनट हवाबाज़ी पर खर्च किये हैं। जैसा कि हमने पहले भी बताया है, पाण्डे
जी के वीडियो चिप्स के पैकेट के समान होते हैं। उसमें सड़े चिप्स के अलावा आधी
जगह बदबूदार गैस भरी होती है। यह वीडियो भी इस आम नियम का अपवाद नहीं है। पाण्डे
जी काम की बात करने की बजाय बार-बार हमें याद दिलाते हैं कि उनसे गलती हो सकती है, उन्हें
ठीक किया जाय, क्योंकि सीखना तो एक दो-तरफा प्रक्रिया होती है; कई
लोग गुरू-घण्टालों के समान जटिल शब्दावली में बात करते हैं, मार्क्स
व हेगेल वगैरह को कोट करते हैं,
और अपने ज्ञान से लोगों को आतंकित करते हैं, यह
तो कोई मार्क्सवादी तरीका नहीं है। पूंजीवादी
राज्यसत्ता के एक चाकर के रूप में पाण्डे जी बिल्कुल पूंजीवादी राज्यसत्ता
जैसी ही बातें कर रहे हैं! जब पूंजीवादी राज्यसत्ता किसी से आतंकित होती है, तो वह सबके लिए ही उस चीज़ को
आतंककारी बता देती है! उसी प्रकार पाण्डे जी जिन आलोचनाओं से आतंकित हो गये हैं, उन्हें बौद्धिक आतंककारी करार
देने की कोशिश कर रहे हैं! उनका कहना है कि इनको पढ़कर कुछ समझ नहीं आता है, बस आतंक पैदा होता है! अपने आतंकित
होने को वह पूरे हिन्दी जगत पर ही आरोपित किये दे रहे हैं। कोई ताज्जुब की बात
नहीं है, ज्यादातर मूर्खों को यह लगता ही है कि सभी मूर्ख हैं।