Monday, 7 December 2015

निमंत्रण - 'जाति उन्मूलन और बी.आर. अम्बेडकर की विरासत' पर व्‍याख्‍यान

प्रिय साथियो,
यह दावा करना पुनरुक्तिपूर्ण होगा कि जाति एक ऐसा यथार्थ है जो भारत के सामाजिक और आर्थिक जीवन के सभी पहलुओं में गहराई से पैठा हुआ है। भारतीय समाज में दलित मज़दूर जॉर्जियो अगमबेन के शब्दों में कहा जाय तो ‘होमो सेसर’ की भूमिका का निर्वाह करते हैं। पिछले कुछ दशक अप्रत्यक्ष दण्डेतरता समेत भयंकर दलित-विरोधी अत्याचारों के साक्षी रहे हैं क्योंकि अपराधियों को अक्सर दोषमुक्ति मिलती रही है। दशकों पुराने बथानी टोला नरसंहार के साथ हाल ही में भगाणा की घटना इस तथ्य की विशेष रूप से पुष्टि करते हैं। ‘सकारात्मक कार्यवाही’ (यद्यपि यह बेहद दोषपूर्ण है) के बावजूद, दलितों का 91 फीसदी हिस्सा अभी भी समाज के सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर रह रहा है और भारत के ग्रामीण व शहरी मज़दूर वर्ग के विचारणीय हिस्से का निर्माण करता है। चूँकि सरकारी रोज़गार लगातार पिछले लगभग दो दशकों से कम होते जा रहे हैं (यहाँ तक कि पहले भी, सरकारी रोज़गारों की संवृद्धि दर बेहद कमज़ोर थी), इस ‘सकारात्मक कार्यवाही’ का सवाल और भी अधिक अप्रासंगिक बन गया है और मान्य धारणाओं से आगे सोचने को बाध्य कर रहा है।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दलित-विरोधी अत्याचारों के साथ ही धार्मिक अल्पसंख्यकों की हत्या व उन पर अत्याचारों में भी वृद्धि देखी गयी है। इसके साथ ही अपने चुनावी हितों के लिए दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा बी.आर. अम्बेडकर की विरासत और प्रतीक को भी हथियाने की कोशिशें की जा रही हैं। जाति के उन्मूलन के लिए अम्बेडकर के राजनीतिक विचार और रणनीतियों से कोई सहमत या असहमत हो सकता है, फिर भी, कोई भी प्रगतिशील व्यक्ति इस तथ्य को समझता है कि अम्बेडकर को हथियाने और उनका भगवाकरण करने की ये कोशिशें भगवा ब्रिगेड के कोरे झूठ और गोयबल्सीय प्रचार पर आधारित हैं। हम जिस समय में रह रहे हैं उसने जाति प्रश्न को पहले से भी अधिक अहम बना दिया है, न केवल दलितों व अन्य शोषित जातियों के उत्थान के लिए, बल्कि मौजूदा फासीवादी आक्रमण के खिलाफ एक प्रतिरोध खड़ा करने के साथ ही क्रान्तिकारी सामाजिक-आर्थिक रूपान्तरण की समूची परियोजना के लिए भी। आने वाले दिन दोहरी सम्भावनाएँ पैदा करेंगेः एक क्रान्तिकारी सम्भावना और साथ में प्रतिक्रान्तिकारी सम्भावना। यदि क्रान्तिकारी ताकतें क्रान्तिकारी सम्भावनाओं का लाभ उठाने में असफल रहती हैं तो इसका प्रायश्चित ख़तरनाक और अनियंत्रित फासीवादी प्रतिक्रिया होगी जिसका सीधा मतलब होगा मज़दूर अधिकारों व नागरिक अधिकारों पर हमला, दलितों और अल्पसंख्यकों और साथ ही प्रवासी मज़दूरों के दमन में वृद्धि। इसीलिए अन्य प्रश्नों के साथ ही जाति के उन्मूलन के प्रश्न पर सभी प्रगतिशील ताकतों के लिए गम्भीरता से, बगैर कठमुल्लावादी संकीर्ण मानसिकता और सम्प्रदायवाद के सोचना अनिवार्य हो गया है।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि जाति के उन्मूलन पर विचार करते हुए बी.आर. अम्बेडकर की विरासत और अवदानों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना होगा। जाति विरोधी आन्दोलनों में अम्बेडकर का प्रश्न गैल्वनीकरण करने वाला रहा है। जहाँ एक ओर अम्बेडकरवादी आन्दोलन के एक हिस्से ने अम्बेडकर को पूजनीय बना दिया है, जिसने वस्तुतः अम्बेडकर की विरासत को नुकसान ही पहुँचाया है, वहीं दूसरी ओर क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन पिछली सदी की शुरुआत से ही भूमिहीन दलित मज़दूरों के अनेकों जुझारू संघर्षों का नेतृत्व करने के बावजूद भी जाति प्रश्न को इसकी ऐतिहासिकता और साथ ही इसके सभी राजनीतिक और आर्थिक आयामों में समझने में विफल रहा है। इस विफलता ने अम्बेडकर और उनकी राजनीति के साथ एक दिक्कततलब रिश्ते को भी जन्म दिया है। चूँकि अम्बेडकर का प्रतीक विभिन्न वास्तविक और अवास्तविक कारणों के चलते लगातार बेहद विवादित प्रश्न रहा है, लिहाज़ा, मज़दूर आन्दोलन के लिए यह समय की माँग है कि अम्बेडकर के राजनीतिक विचार और उनके राजनीतिक व्यवहार का एक वैज्ञानिक और सन्तुलित आलोचनात्मक मूल्यांकन पेश किया जाय। ऐसा किये बगैर मज़दूर आन्दोलन और दलित मुक्ति आन्दोलन के कुछ पीड़ादायी अवरोधक नहीं हटाये जा सकते, जिन्होंने वस्तुतः इन दोनों आन्दोलनों को एक रैडिकल पूँजीवाद-विरोधी जाति-विरोधी आन्दोलन में विलय हो जाने से रोके रखा है, जो कि भारत में क्रान्तिकारी रूपान्तरण की किसी भी परियोजना के लिए ज़रूरी हैं। कोई भी संजीदा राजनीतिक और समाज विज्ञानी इस तथ्य को जानता है कि मौजूदा पूँजीवादी राज्य की एक जेण्डर और जाति भी है।
इन सबको ध्यान में रखते हुए ‘पोलेमिक’ आप सभी को ‘जाति उन्मूलन और बी.आर. अम्बेडकर की विरासत’ पर अभिनव सिन्हा द्वारा एक व्याख्यान के लिए आमंत्रित करता है जो कि एक मज़दूर कार्यकर्ता व स्वतंत्र शोधकर्ता और मज़दूरों के मासिक अखबार ‘मज़दूर बिगुल’ के संपादक हैं। व्याख्यान के बाद वक्ता के साथ एक विचार-विमर्श का सत्र रहेगा। हम सभी छात्रों, शिक्षकों, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को तहेदिल से आमंत्रित करते हैं। 
क्रान्तिकारी अभिवादन सहित 
पोलेमिक कलेक्टिव, मुम्बई

समय - 19 दिसम्बर 2015, शनिवार, सुबह 10.30 बजे
जगह - इण्टरनेशनल स्टुडेण्टस हॉल, वी वी भवन, फर्स्ट फ्लोर, बी रोड़, चर्चगेट, सिडनहॅम कॉलेज के पास, मुम्बई-400020


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